सीताराम शर्मा सिद्धार्थ, शिमला

संभल के चल इस डगर चाहतें दम तोड़ती हैं यहां,
रख तेज नजर पंखों पे हवा भी रुख बदलती है यहां,
सेहत के लिए खराब है कितना भी लिख लो,
फिर भी हर मोड़ पर शराब की दुकान है यहां,
आदमी आदमी रहता है जब तलक जमीं पे है,
खुदा हो जाता वही जो तख्त पे चढ़ता है यहां,
तमाशबीन है कबसे सरकार ओ चौकीदार,
उठता है सरेआम जनाजा कायदों का यहां,
देखे हैं शजर कैद हमने सीखचों के बीच,
कहने को आला के बड़े दरबार हैं यहां,
देखा नहीं अबके कोई चांद,
अरसे से चरचे कहकशां के हैं यहां I

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