उमा ठाकुर, स्पेशिल फीचर, 7 नवंबर, 2019, शिमला

कुमारसेन में संस्कृति एवं साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित

हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी व् मंथन साहित्य मंच हिमवाणी संस्था एव हिमाचल फ़िल्म सिनेमा के संयुक्त तत्वाधान में सरस्वती विद्या मंदिर कुमारसेन में साहित्यिक व् सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें अकादमी सचिव डॉ कर्मसिंह ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत करते हुए अकादमी द्वारा लोक संस्कृति को सहेजने के प्रयासों के बारे में जानकारी दी, साथ ही हिमवाणी व् मंथन व् साहित्य मंच के द्वारा इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों की सराहना की ।

इस साहित्यिक व् सांस्कृतिक समारोह में 10 स्कूलों के बच्चों ने अपनी प्रतिभा को हिमाचल लोक संस्कृति से जुड़ी विद्याओं को प्रस्तुत कर उजागर किया । हिमवाणी संस्था द्वारा मई माह में आयोजित “जागरूक मतदाता” कॉन्टेस्ट के तहत विजेताओं को सर्टिफिकेट प्रदान कर सम्मान से नवाज गया ।

इस अवसर पर स्कूली बच्चों द्वारा सरस्वती वंद ना, एकल पहाड़ी गीत, नाटी, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ नाटक, कविता पाठ प्रस्तुत किए साथ ही शिलारु महिला मंडल द्वारा लुप्त होते पारंपरिक विवाह गीत लाणे, नैंणी, जाति, गांगी विद्या की सूंदर प्रस्तुति दी ।

इस दौरान हिमाचल फ़िल्म सिनेमा व् “हिमवाणी” के फेसबुक पेज़ पर संस्कृति एवं साहित्यिक आयोजन का लाईव प्रसारण किया गया । इस अवसर पर हितेन्द्र शर्मा, संजीव कुमार, कल्पना गांगटा, ज्ञानी शर्मा, उमा ठाकुर, आचार्य संजीत शर्मा, मधु शर्मा, शविता चौहान, ताज़ी राम, कुशल, पूजा, स्नेह नेगी, अभिषेक तिवारी, प्रीति शर्मा, कुलदीप, तरुण, नरेश, के सी परिहार, सतीश, दीपक, कृष्णा, विशु ठाकुर व् स्कूली बच्चों में इशिता, आयुष, आर्यन, दिया, विक्की, मनोज, नीरज, इशु, हर्षित, युविका व् मनोज ने लोक संस्कृति से जुड़े रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए।

कार्यक्रम संयोजक हितेन्द्र शर्मा, संजीव कुमार, कल्पना गांगटा, उमा ठाकुर ने अपने अपने विचारों  द्वारा संस्था की गतिविधियों की जानकारी दी । कल्पना गांगटा व् रविता चौहान द्वारा मंच का सफल संचालन किया गया ।

ये प्रयास तभी सफल हो पाएगा जब साहित्यक गोष्ठियां बंद कमरों से निकल कर गाँव की मुंडेर को छुएंगी। ग्रामीण परिवेश में प्रतिभा की कोई कमी नहीं, जरुरत है तो बस उन्हें मंच प्रदान करने की। साथ ही लुप्त होती विद्याओं को आने वाली पीढ़ी तक सहेज़ कर रखना हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है, ख़ास कर बुद्धिजीवी साहित्यकार अपनी लेखनी से युवा पीढ़ी को साहित्य सृजन के लिए प्रेरित कर सकते हैं । नशे के गर्त से उन्हें बचा सकते हैं। लोक संस्कृति के इस अनमोल खजाने को युवा पीढ़ी को साथ में जोड़ कर आने वाली पीढ़ियों के लिए सहेज कर रखना हम सभी का दायित्व है । सभी को आगे आ  कर अपने अपने स्तर पर हिमाचल की समृद्ध लोक संस्कृति  को “विशव पटल” तक पहुँचाने का प्रयत्न करना चाहिए ।

Previous articleSeminar & Painting Competition on Ill-Effects of Noise Pollution – Auckland Girls
Next articleABHI 15 Years of Making Difference in Society

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here