कल्पना गांगटा, शिमला

देख कर सड़क पर एक मुरझाया फूल,
चुभ गया हिरद्य में भी शूल,
ताउम्र डाली की बाहों में झूलता रहा,
पवन के झोंकों संग अठखेली करता रहा,
सुकोमल, मनमोहक सबको हर्षाता रहा,
देख इसे हर कोई चूमता, मुस्कुराता रहा ।
इक पल के लिए हर कोई भूल जाता था अपना दुखड़ा,
देख कर इसका हँसता, खिलखिलाता मुखड़ा,
चाँद की सानिध्य किरण, वार कर रात भर मोतियों की सम्पदा,
बहलाती रही, हँसाती रही इसे सदा ।
संरक्षण में, पोषण में हमेशा तत्पर रहा माली,
करती थी गर्व इसकी मदमस्त हंसी और सुंदरता पर डाली ।
न कभी सोचता होगा फूल,
अपनी भी किस्मत में कभी आएगी धूल,
आज सोच रहा होगा, मुरझाया फूल,
मधु, सौरभ दान किया उम्र भर,
अपना ले जो आज, आता नहीं कोई नजर,
हमेशा से सबको भाता रहा, सर्वस्व अर्पण कर हर्षाता रहा ।
होता है सदा यही सब इस संसार में,
स्वार्थवश खड़े हैं सभी कतार में,
वालयों में अर्पित होता रहा,
सर्वत्र खुशबू अपनी बिखेर,
वीरों के शवों पर सजता रहा ।
न सोचा था कभी ऐसा भी होगा,
अंक में खिलाती थी जो हवा,
आज उसी ने जमीं पर गिरा दिया,
तड़प रहा अब धारा पर,
सौन्दर्य कोमलता सब दिया गवा,
मुख मुरझाया हुआ, शुष्क बिखराया हुआ,
रही नहीं भँवरे को भी पास आने की चाह,
त्याग, समर्पण और निस्वार्थपन पर,
पिघला न जब यह संसार,
फिर कौन बहाएगा आँसू कभी किसके लिए,
निकलती हिय से बस यही आह ।

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