कल्पना गंगटा, शिमला

अलग अलग पैगाम लिए,
नए नए आयाम लिए,
सैलानियों को आमंत्रित करती,
हरियाली को सफेदी में तब्दील करती पहाड़ों की बर्फ ।

सुंदरता इसकी मनभावन,
पर किसी को देती ये चुभन,
पशु-पक्षी आवास छोड़, भटकते वन-उपवन,
कड़कती ठंड लिए, चांदी की चादर डाले पहाड़ों की बर्फ ।

उस आदमी से पूछो,
जो नंगे पाँव चलता है,
उस बच्चे से पूछो, जो कपड़ों को तरसता है,
उस औरत से पूछो, बर्फ के कारण,
चूल्हा नहीं जिसका जलता है ।

एक-एक सफ़ेद फाहा,
कैसे उनको डसता है,
देती है कितना मजा, पहाड़ों की बर्फ ।

सैलानियों के लिए मस्ती और उमंग है,
युवकों के लिए खुशी की तरंग है,
पहाड़ों की बर्फ ।

चांदी की परत लिए,
तरूओं को दुल्हन सी सजाती,
सूरज की किरण पड़ते ही लगती मनमोहक,
ये पहाड़ों की बर्फ ।

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