रोशन लाल पराशर, लोअर फागली शिमला

ईर्ष्या नफरत मिटे जहां से,
हंसी खुशी फैले चहुं ओर ।।
व्यर्थ बातों को देकर तूल,
हो जाते रिश्ते कमजोर ।।
कटुता कहीं न आए दिल में,
आनंदमयी हो हर ओर ।।
दो पल प्यार लुटाने को,
टुक-टुक देखे चाँद चकोर ।।
नीरस लगने लगे ये रिश्ते,
जब स्वार्थ ने फैलाया ज़ोर ।।
दिल दरवाजे जंग लगे तो,
चीं-चीं का करते हैं शोर ।।
जीवन में नाजुक हैं रिश्ते,
ज्यादा कसो न इनकी डोर ।।
चाहे कोसों साथ बढ़े हैं,
नहीं मिलते हैं नदी के छोर ।।
नभ में देख के काली घटाएँ,
पंख फैला कर नाचे मोर ।।
हो सके तो पीड़ा हरना,

दिल मत करना कभी कठोर ।।

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